इंद्रजालइंद्रजाल

# तर्क_का_तर्क

इस धरती पर मूलतः एक ही संसाधन है।वह है यह धरती।बाकि जितने भी ईजाद और जुगाड़ मानव सभ्यता ने किए हैं उन सबका आधार धरती ही है। जब वर्षा होती है तो यह धरती अपने आँचल में जल समेट लेती है।पेड़, पौधे, जंतु,पहाड़,समुन्दर,जड़ी बूटी,रत्न आदि सब का उद्गम स्थान ये पावन धरा ही है।

विज्ञान का मूल सिद्धांत है कि- everything comes from something, from nothing only nothing comes.

तो अगर यह धरती जीव और वनस्पतियों को धारण और पोषण करती है तो निश्चित ही यह स्वयं जीवंत है।कोई मृत वस्तु जीवन प्रदान नहीं कर सकती।प्रकृति धरती का आवरण है,उसका लिबास है।एक अणु से लेकर एक निहारिका तक सब जीवंत है।हाँ जीवन का अनुभव सबका भिन्न भिन्न होता है।

अंग्रेजी में प्राकृतिक को नेचुरल या नार्मल कहा जाता है।यानि जिसका होना आपको तर्क संगत लगे।इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जीवन और मृत्यु।प्रतिपल असंख्य तारे टुटते बनते हैं,कितने ही जीव - वनस्पति हर क्षण पैदा हो रहें हैं और मर रहें हैं।हमारे शरीर में भी करोड़ो कोशिकाओं का निर्माण और विनाश होता रहता है।

जब हम कहते हैं कि उक्त सभी चीजें प्राकृतिक है तो इसका अर्थ हुआ कि यह प्रकृति की मनमानी है।यह जो गुण धर्म प्रकृति के अंदर निहित है इसका कारण हमें नहीं पता।बस हमने करोड़ो वर्षों से इसे ऐसा करते देखा है और इसलिए यह हमें बहुत सामान्य लगती है।

कुछ वैज्ञानिक बुद्धि वाले बोलेंगे कि हमने तो प्रकृति पर बहुत हद तक विजय पा ली है।उसके रहस्यों का पता चल गया है।

एक मशहूर वैग्यानिक ने कहा है कि- "इस सृष्टि के रहस्य को बाह्य रूप से खोजना मुश्किल है,क्योंकि आखिरी प्रयास में हमने देखा कि हम स्वयं उस रहस्य का हिस्सा हैं"।
(Ref Qunatam physics)

अब कल्पना कीजिये कि सृष्टि के आदि में जो लोग होंगे वह इसको कितनी विस्मयता से देखते होंगे। जीवन एकदम नया होगा, जीवंत होगा, अन्तकरणः में जिज्ञासा और विस्मयता के प्रकाश जब टकराएंगे तब तो चैतन्य खिल उठता होगा।अगर वो लोग किसी प्रकार बर्फ़ में जमें होंगे और अचानक आज बर्फ पिघल जाये तो क्या उनको विस्मय नहीं होगा इस प्रकृति को देखकर।
अवश्य होगा।कल्पों कल्प बीत जाएं तो भी उनको यह प्रकृति रहस्य ही लगेगी क्योंंकि उनका त जिज्ञासु होते हैं। 

क्योंकि उन्होंने इस चमत्कार ( जीवन)को देखने से ज्यादा जीने का प्रयास किया।उन्होंने इसको एक रहस्य माना और खुद को इस रहस्य का हिस्सा।इसलिए एक तरह से देखा जाय तो पहाड़, मौसम,पेंड़, नदियों,अग्नि,वर्षा को इसलिए पूजा जाता है क्योंकि जहाँ से वो सत्य को देख वहाँ इनमें कोई भेद नहीं और अभी दिव्य हैं,जीवन को पोषित करने वाली।


आपने देखा होगा अधिकांश शिशु कितने जिग्यासु और चंचल होते हैं।विशुध्द चैतन्य जो सब कुछ जानना चाह रहा है और त्रिगुणात्मक शक्ति जो दिखाई दे रही है।लेकिन समय के साथ साथ यह तत्व क्षीण होता जाता है

माता पिता और गुरु अगर इन चैतन्य के बीज को सींच सके तो वह सहस्त्रार में जाकर खिलेगा ही।

दिन क्यों होता है, रात क्यों होती है।मौसम क्यों बदलते हैं, बिजली आखिर अंदर क्या करती है कि उपकरण जीवंत हो उठते हैं।इस प्रकार के असंख्य प्रश्न होते हैं मन में।पहले तो बच्चे प्रयास करते हैं पूछकर जानने का परन्तु ना तो उन्हें सही उत्तर मिलता है ना ही या निश्चिंतता कि अगले को भी नहीं पता है।झूठ बोल देते है बच्चों से भी।और यहीं से कथित शिक्षा प्रारम्भ होती है।

एक महान लेख़क ने कहा था कि मैंने कभी भी सीखने को अपनी शिक्षा पर हावी होने नहीं दिया।

सुकरात ने कहा था कि विस्मयता से ज्ञान होता है और ज्ञान से मनुष्य राजा।सुकरात की नज़र में धन दौलत और प्रजा रखने से कोई राजा नहीं होता।राजा वह है जो स्वंतंत्र है और स्वतंत्र वह है जो निर्भय है।

सुकरात को ज़हर दे दिया गया।राजा ने शर्त रखी कि अपनी बात से पीछे हट जाए।लेकिन सुकरात नहीं माने।उन्होंने कहा कि दो ही बातें होंगी- या तो मर ही जाऊंगा।जब मैं ही नहीं रहूंगा तो राग और विराग किस बात का और जो अगर जिंदा रहा तो भी मौज है।तो राजा कौन।राजा वो जिसके पास चुनाव था।जिस तथाकथित राजा ने दंड दिया उसके पास और कोई दूसरा चुनाव नहीं था।अगर सुकरात जीवित रहता तो यूनान में क्रांति निश्चित थी।लेकिन सुकरात के पास दो विकल्प थे- या तो मृत्य चुनता या तो अपने विचारों की हत्या करता।राजा तो सुकरात था।

प्रकृति को समझने का प्रयास छोड़ दीजिए , यह तो आदि शक्ति /primal undifferentiated energy का नृत्य है।और नृत्य को समझना है तो उसको देखना बन्द करना होगा।और देखना बन्द तभी करोगे जब नृत्य को समझ जाओगे।(ParadoxicalExistence)

इतिहास में जिन्होंने भी इस नृत्य के पैटर्न को समझ लिया वह दार्शनिक बन गए।

जिन्होंने इस नृत्य को नकल करना सीखा वो वैज्ञानिक हो गए।

जो इस नृत्य के हर फ्रेम को समग्रता से देखना सीख गए वो कलाकार हो गए।

लेकिन यह सब देख ही रहें हैं।चार्वाक वाले इसे देखकर यहीं जन्नत बनाने का प्रयास कर रहें हैं।तो धार्मिक लोग कहीं हवा में स्वर्ग देख रहें हैं।कुछ मसीहाओं के इन्तेजार में है कि divine Intervention होगा।

जिस क्षण बाह्य यात्रा रुकती है, तत्क्षण अन्तर्यात्रा शुरू होती है।

राजा वह है जो भेष बदल कर अपनी प्रजा के हाल चाल को जाने।महाराजा वो है जो भेष बदल कर अपनी राजतंत्र(मंत्री/संतरी/सेनापति) की स्थिति देखें।रूप,रस, गंध,शब्द,स्पर्श क्या है ये सब।जब हम किसी वस्तु को देखते हैं तो कैसे? प्रकाश कीकिरणें(photons/energy packets) किसी वृक्ष से टकराई, फिर कुछ ऊर्जा उस वस्तु ने खींच ली बाकी उसने रिफ्लेक्ट कर दिया।तो यह रिफ्लेक्शन (energy) हमारी आंखों से टकराई।अब उस stimulas के कारण हमारे मष्तिस्क ने एक waveform(blueprint) बनाया और फिर उसको आंख की रेटिना में collapse कर दिया यानी waveform को किसी दृष्टा ने देखा और वह particle(चित्र) बन गया। अब इतनी प्रक्रिया हुई तो कुछ समय जरूर लगा होगा।भले ही हमारी दृष्टि से यह लगे कि सब कुछ तत्क्षण हो रहा है परंतु एक तरह से हम बस एक कहानी के किरदार है जो पूर्व लिखित कहानी को time space में holographically प्रोजेक्ट कर  रहें हैं।

आप butterfly effect पढ़े।कुल मिलाकर यह सिद्धांत कहता है कि प्रकृति में कोई भी हरकत छोटी बड़ी नहीं होती।सब का सामान मूल्य है।

यह जो प्रकृति है, त्रिगुणात्मक है- सत्व(purity/axis) रजस(passion/movement)तमस(Ignorance/inertia)..

सत्व प्रकृति की आवरण शक्ति है।रजस विक्षेप शक्ति है।और तमस अध्यास शक्ति है।

आवरण का मतलब है मुखौटा/कपड़ा/ढक हुआ ।सत्य को सत्व से ढका गया है।

विक्षेप का अर्थ है अविद्या , एक तो सत्य पहले से ढका है ऊपर से गतिमान है इसलिए इसको पूर्ण रूप से देखना कठिन हो जाता है।

अध्यास का अर्थ है superimposition (फ़ोटो/वीडियो एडिटर)मतलब पहले तो मिट्टी मिट्टी नहीं है(आवरण) ऊपर से तेज चक्की घुमाकर(विक्षेप) घड़ा बना दिया गया(अध्यास)।

दार्शनिको ने तो अध्यास पकड़ लिया।वैज्ञानिकों ने विक्षेप पकड़ लिया।पर आवरण तो वही हटा पाया है जिसने मुखोटों का विज्ञान समझ लिया।उस धुरी को समझ लिया जिसके चारों और विक्षेप और अध्यास का खेल चल रहा है।

भगवान बुद्ध ने कहा था उन्हें शून्य मिला।इस शून्य को बहुत नकारात्मक भाव से लोगों ने समझा।किसी को इतना भी नहीं सूझा कि शून्य अगर कोई स्थिति/वस्तु/भाव/ज्ञान है तो कोई तो उस स्थिति को देखने वाला, उस वस्तु को स्पर्श करने वाला,उस भाव को महसूस करने वाला या उस ज्ञान को धारण करने वाला होगा न।कौन है वो?

इस संसार में सब भयभीत है।जो अभय बने फिरते हैं वह भी किसी पर आश्रित है।अभय का अर्थ है किसी और के कारण आपका भय दूर हो जाता है।लेकिन जिसने आपको भयमुक्त रखा है उससे तो भय होगा ही।जो व्यक्ति बिना किसी के आश्रित हुए भयमुक्त है वही निर्भय है ।

प्रकृति के गुण धर्म हैं बस इतना समझने की चीज़ है।क्यों है यह समझने का प्रयास व्यर्थ है।आप बस इतना समझिये की इन तत्वों को धारण किसने किया है।

#Sleeping_Abductees#विस्फोट_BigBang




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