दावानल-संघर्षन

#दावानल

हम यूँही मुस्कुराते हैं,तुम जलते क्यों हो
खामखाँ ही इतना, मचलते क्यों हो
जो इतना ही शौक है हमे गिराने का
तो खुद हर कदम पर संभलते क्यों हो"

"खुद को ही खोल लिया करो वीराने में 
हमारी गली को ही निकलते क्यों हो
ना हमारी तुम समझोगे, न तुम्हारी हम
बेकार की डगर है, तुम चलते क्यों हो"

"वक़्त गश्त पर रहता है,बारी सबकी आयेगी
नाहक अहम की ज्योत में पिघलते क्यों हो
सत्यनावेशी बने फिरते हो जनाब जब
तो सत्य के विपरीत ही ढलते क्यों हो"

हम तो यूँही मुस्कुराते हैं, जलते क्यों हो।



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